जब केहू से हिजा-गिला राखीं।
सामने अपना आईना राखीं ।।
प्रेम केहू से जन करीं अचके ।
सोझा सब दिन,दशा-दिशा राखीं ।।
ताली एक हाथ से ना बाजेला ।
अपनो मन में दुआ-दया राखीं ।।
रंग भरला के बात बा खाली ।
पहिले ढ़ाँचा बना-बना राखीं।।
अबकी जिनगी के बाँध टूटि सब।
छूँछे कहिया ले आसरा राखीं ।।
आज जौहर गजल के महफिल में ।
शेर खाँटी नया-नया राखीं ।।
(जौहर शफियाबादी)