फ़िजाँ है ये खिली खिली के हर तरफ बहार है
बरस रही हैं बूँदों जो ये आसमाँ का प्यार है
हरी भरी है ये जमीं धुले हैं फूल औ शजर
खिली खिली है वादियाँ तो झूमती बयार है
नशा है प्यार का हसीं जो बूँदे तन को छू रहीं
हैं भीगे भीगे गेसू ये चढ़ा हुआ खुमार है
महक रही कली कली चहक रही है तितलियां
बहक रहे हैं भौंरे रंग प्रेम का शुमार है
फ़लक से बूँद थी गिरी पलक पे आ ठहर गई
गुलाबी सुर्ख पंखुरी के रूप में निखार है
लगे हैं झूले बाग में औ बूंदों की लगी झड़ी
चली पवन उड़े है मन उमंग बेशुमार है
ज्योति मिश्रा
पटना