गजल

 



डा. जहूर शैफियाबादी


 खुलेआम दिन-रात बिकाता, ई का होता ।
  महंगा-सस्ता बात बिकाता, ई का होता ।।


  प्रजातंत्र के मोल गवा के, छी-छी, थू-थू।
  धरम आ देखीं जात बिकाता, ई का होता ।।


  कहाँ सपना बापू के पुरल कवनो, बोलीं ना ।
  उनके नाम से घात बिकाता, ई का होता ।।


  कहाँ बा आपन देश खड़ा, बतलाईं ना कुछ ।
  महंगा नूनो-भात बिकाता, ई का होता ।।


  मरत बा किसानों भूख से, अब देखीं ना ई ।
  सुखारो में बरसात बिकाता, ई का होता ।।


  सत्ता के बा बाजार गरम तब, सोंची ना कुछ ।
  अबो थाती सौगात बिकाता, ई का होता ।।


डा. जहूर शैफियाबादी


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