दोहे

 



मानव यूँ ही घूमता लेकर मान गुमान।
समय हथौड़ा ज्यूँ पड़े मिट जाए सब शान।।1


बेटी मरती पेट में किये बिना अपराध।
बेटे काले कृत्य को करते मगर अवाध।।2


बेटी को भी चाहिए बेटे जैसा प्यार
बेटी को भी जगत में जीने का अधिकार।।3


नहीं किसी के पास है पहले सा व्यवहार।
औरों' खातिर देते थे अपनी खुशियाँ हार।।4


सास की'अपनी सोच है बहू की'अपनी राय।
सुबह बहुत ही ठंड है कौन बनाए चाय।।5


पति बेचारा मौन है मानों यूँ फुटबॉल।
कूद कूद कर कर लिया खूद का बुरा हाल।।6


सास बहू के बीच में हर दिन होती रार।
पुत्र यही है सोचता किसकी होगी हार।।7,


रीना मिश्रा


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