दीपशिखा सागर : साहित्यिक परिचय

 



 


नाम-दीपशिखा सागर
माता का नाम-श्रीमती शशि श्रीवास्तव
पिता का नाम-कैप्टेन भुवन श्रीवास्तव
पति का नाम-डॉ कर्मवीर सिंह सागर
जन्मतिथि-11/ 5/73
जन्म स्थान -वारासिवनी
शिक्षा-एम्. ए. राजनीति शास्त्र
कार्यक्षेत्र- गृहिणी,लेखिका


सामाजिक क्षेत्र-कुछ सामाजिक संस्थाओं और रामायण मंडली के द्वारा नारी उत्थान एवं जन जागरण का कार्य


विधा-ग़ज़ल, हिंदी छंद,कविता, गीत,


प्रकाशन-  एकल ग़ज़ल संग्रह 'उफ़्फ़',  एक गीत संग्रह' नेह निर्झरिणी' प्रकाशित
... लगभग 20 से ज्यादा साँझा संकलन, ग़ज़ल, गीत एवं मुक्तक के।


सम्मान- बालकृष्ण शर्मा नवीन स्मृति पुरस्कार, साहित्य शशि सम्मान,
शब्द शक्ति सम्मान, जिज्ञासा शिरोमणि, मलिका ए ग़ज़ल की उपाधि, सशक्त लेखनी सम्मान, मुक्तक शिरोमणि, मुक्तक रत्न, मुक्तक सम्राट और ग़ज़ल के क्षेत्र में अनेकों सम्मान।
अन्य उप्लब्धियाँ- विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में निरन्तर रचनाएं प्रकाशित एवं fb के लगभग हर मंच से हर विधा में ढेरों सम्मान
मुशायरों और कवि सम्मेलनों में देश के ख्यातिनाम कवियों, गजलकारों के साथ मंच साझा करने का गौरव प्राप्त-
 
*आत्मकथ्य*


एक बेकली जो रूह में तारी है उसे अहसास की कलम से  दर्द की पोशाक पहनाकर ,शब्दो से श्रृंगारित कर ग़ज़ल में , गीत, मुक्तक में जैसे खुद को ही ढालती हूँ....
कोई महान उद्देश्य नही लेखन का बस दिल की बात दिल को छू जाए.... सर्वप्रथम तो स्वान्तः सुखाय और फिर अच्छी सोच को लेकर समाज में एक स्वस्थ साहित्यिक वातावरण बनाने की दिशा में छोटा सा प्रयास।


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गुलाब है ,वो चाँद है,वो मौसमे बहार है,
ख़ुमार है निगाह का, वो चैन है क़रार है।
हरेक सांस में घुला नशा है जिसके प्यार का,
उसी पे दिल लुटा दिया, उसी पे जां निसार है...
निसार है निसार है उसी पे जां निसार है...


1-उतर रहा है पूर्णिमा का चांद आज झील में,
उजास नेह का भरा हुआ है नैन नील में।
वियोग राग बाँसुरी का मंद मंद हो गया,
मिलन की रागिनी में ये जहान सारा खो गया।
किसी की याद चाँद तारे कर रही शुमार है...
निसार है निसार है, उसी पे दिल निसार है।


2-मिलन का ये मल्हार है या धड़कनों का शोर है,
किसी को देख नाचता विमुग्ध मन का मोर है।
नवीन आस आंख में नवीन स्वप्न बो गई,
प्रिया सनेह की दुल्हन बनी पिया हो गई।
कुँवारी साध हर्ष का बजा रही सितार है...
निसार है निसार है उसी पे जां निसार है....


3- छलक रही प्रणय-सुधा की श्वांस श्वांस गागरी,
विमोहिनी नज़र कहे नज़र मेरी उतार री।
नया नया ही छंद है ये पावनी सुनीति का।
पुनीत सर्ग काव्य में जुड़ा है आज रीति का।
हरेक पृष्ठ पर लिखा जहाँ कि प्यार प्यार है...
निसार है निसार है उसी पे दिल निसार है....


दीपशिखा-


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