चलते चलते......

 


 


 



चलते -चलते अनुभव का कुछ  सार तत्व  ले ,
कहा , धरा ! ले अब सारे बेकार तत्व   ले ,
चलते-चलते उलझन-जकडन-कटुबंधन का ,
आज सौंपते हैं,  घुटन का हार  तत्व  ले ।
ढोते-ढोते अब बस्ते को चीख रहे हैं, 
मुश्किल का साम्राज्यवादी-श्रृंगार तत्व  ले ।
जिसमे घुल-घुल मोम  सदृश सिर्फ  जलना है ,
ले जीवन का कालमुखी आहार तत्व  ले ।
जीवन  को ही जान आज तूं  भार सदृश  माँ!
अपनी  छाती पर  पलता यह भार तत्व  ले ।
तेरा तुझको  देने में  संकोच  कहाँ  है ,
होने का यह बोध और अधिकार तत्व  ले ।
##############अर्चना


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