चलते -चलते अनुभव का कुछ सार तत्व ले ,
कहा , धरा ! ले अब सारे बेकार तत्व ले ,
चलते-चलते उलझन-जकडन-कटुबंधन का ,
आज सौंपते हैं, घुटन का हार तत्व ले ।
ढोते-ढोते अब बस्ते को चीख रहे हैं,
मुश्किल का साम्राज्यवादी-श्रृंगार तत्व ले ।
जिसमे घुल-घुल मोम सदृश सिर्फ जलना है ,
ले जीवन का कालमुखी आहार तत्व ले ।
जीवन को ही जान आज तूं भार सदृश माँ!
अपनी छाती पर पलता यह भार तत्व ले ।
तेरा तुझको देने में संकोच कहाँ है ,
होने का यह बोध और अधिकार तत्व ले ।
##############अर्चना