अपनी सोई हुई क़िस्मत को जगाया हमने,
आज फिर तुझको तसव्वुर में बुलाया हमने।
जब क़दम आपके क़दमों से मिलाया हमने,
वक़्त को अपने इशारे पे नचाया हमने।
तू भी क्या याद रखेगा कि कभी थे तेरे,
जा ग़मे-यार कि अब तुझको भुलाया हमने।
इतनी सी बात पे नाराज़ है गुलचीं क्यों कर,
शाख़ दो शाख़ ही तो मांगा था साया हमने।
नींद को नींद समझकर नहीं सोई आँखें,
जबसे महसूस किया तुझको पराया हमने।
बस यही एक कमी अपनी मुहब्बत में रही,
चीर कर अपना कलेजा न दिखाया हमने।
उसकी यादें थीं कि सोती ही नहीं थीं हरगिज़,
थपकियाँ देके बहुत देर सुलाया हमने।
ख़ुद ख़ुदा उससे कई बार ये कहता होगा,
तेरे जैसा न कोई और बनाया हमने।
फिर बचा ही नहीं ज़ीरो के अलावा कुछ भी,
जोड़कर ख़ुद में से जब तुझको घटाया हमने।
नाम लेते ही तेरा ये हमें लगता है 'शिखा'
जैसे होंठों पे कोई राग सजाया हमने।
दीपशिखा-