-डा•ज्ञानवती
वैशेषिक दर्शन केरे द्वितीय अध्याय मां जल मां रूप , रस और स्पर्श , इन तीन गुणन केरा समावेश बतावा गा है | जल स्निग्ध होयके साथ - साथ प्रवाहितौ होत है | प्रत्यक्ष स्वरूप होयके कारण जल रूपवानौ है | जल का मुख मां डालै पर शीतल , गरम , खार ,मधुर केर रसास्वादन होय से ई रस है | जल का स्पर्श करै पर ईके शीत और उष्ण होय का पता चलत है। ई लिए जल, स्पर्श गुणौ से सम्पन्न है और अग्नि और वायु के गुणन केर
मेलौ है | जल केर उपयोग चिकित्सौ के लिए कीन जात रहा है। यजुर्वेद मां कहा गा है -
" युष्माSइन्द्रोSवृणीत वृत्रतूर्य्ये यूयमिन्द्र्मवृणीध्वं
वृत्रतूर्य्ये प्रोक्षिता स्थ | अग्नये त्वा जुष्टं
प्रोक्षाम्यग्नीषोमाभ्यां त्वा जुष्टं प्रोक्षामि |
दैव्याय कर्मणे शुन्धध्वं देवयज्यायै यद्वोSशुध्दा:
पराजघ्नुरिदं वस्तच्छुन्धामि | | १ ३ | |"
यजुर्वेद केरे प्रथम अध्याय मां कहा गा कि जइसे ई सूर्यलोक मेघ के बरसै के लिए जल का स्वीकार करत है , जइसे जल वायु का स्वीकार करत है , वैसेइ मनुष्यौ उन जल औषधि - रसन का शुद्ध करै के लिए , मेघ केरे शीघ्र - वेग मां , लौकिक पदार्थन का अभिसिंचन करै वाले जल का स्वीकार करै और जइसे वै जल शुद्ध होत हैं , वैसन वहू शुद्ध होइ जाय |
परमात्मा सूर्य और अग्नि केरी रचना यहे लिए किहिन कि वे सबै पदार्थन मां प्रवेश कै के उनके रस और जल का फैलाय देंय ,जी से ऊ पुन: वायुमंडल मां जायके और वर्षा करैं और धरती पर सबका शुचिता और सुख प्रदान कै सकैं |
"आपोSअस्मान् मातरः शुन्धयन्तु घृतेन नो घृतप्व: पुनन्तु ।
विश्व हि रिप्रं प्रवहन्ति देवीरुदिदाभ्य: शुचिरा पूतSएमि |
दीक्षातपसोस्तनूरसि तां त्वा शिवा शग्मां परिदधे भद्रं वर्णम पुष्यन् ।"
।। यजुर्वेद, ४ , २ ।।
हम सबका चाही कि जल से शुचिता का प्राप्त कै के , जल केर शोधन करै के बाद ,ऊका उपयोग कीन जाय, जीसे देह का सुंदर वर्ण , रोग - मुक्ति, पुरुषार्थ सेने आनंद केरी प्राप्ति होय सकै ।
वैदिक ऋषिव वैज्ञानिकन केरी तना जल और वायु केरे प्रदूषण से मुक्त करै केरी बात कहिन है । यजुर्वेद मां वै यहौ परामर्श दिहिन है कि हम लोग वर्षा - जल का कइसे औषधी गुणन से परिपूर्ण कै सकित हैं ।