डा•ज्ञानवती
स्वतंत्रता आन्दोलन का धार साहित्यकारै दिहिन रहै।कौनो सत्ता परिवर्तन केर जौ काम होत है, ऊमा साहित्यकार केरी बहुतै महत्वपूर्ण भूमिका है।ईमां है वंदे मातरम् केर अमर गाथा, एक गीत जौ पवित्र ऋचा बनि गा,देश केर अस्मिता बनिगा-
सुजलाम, सुफलाम् मलयज-शीतलाम्
शस्यश्यामलाम् मातरम्
वन्दे मातरम्
शुभ्र ज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्
सुहासिनीम् सुमधुरभाषिणीम्
सुखदाम्, वरदाम्, मातरम्!
वन्दे मातरम्
वन्दे मातरम्
ब्रिटिश शासन केरे समय देशवासिन के दिल मां गुलामी केरे खिलाफ आगी भड़कावै वाले सिरफ दुइ शब्द रहैं- 'वंदे मातरम्'।
बंगाल केरे महान साहित्यकार श्री बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय केरे मशहूर उपन्यास 'आनंदमठ' मां वंदे मातरम् केर प्रयोग कीन गा। लेकिन ई गीत केर जन्म 'आनंदमठ' उपन्यास लिखै केरे पहिलेन होय चुका रहै। अपने देश का मातृभूमि मानै केरी भावना जगावै वाले कई गीतन मां ई गीत सबसे पहिला है।
'वंदे मातरम्' के ई दुइ शब्द देशवासिन मां देशभक्ति केर अलख जगाय दिहिन और आजौ ई भावना सेने 'वंदे मातरम्' गावा जात है। हम यहौ कहि सकित है कि देश के लिए त्याग करै केरी प्रेरणा देशभक्तन का ई गीतै से मिली। पीढ़ियाँ बीति गईं पर 'वंदे मातरम्' केर प्रभाव आजौ वहै है। 'आनंदमठ' उपन्यास केरे माध्यम से ई गीत सब कहूं फैला। तब बंगाल में 'बंग-भंग' का आंदोलन जोर बांधे रहै। दुसरी ओर महात्मा गाँधी केर असहयोग आंदोलन लोकभावना का जगाय दिहिस रहै।
बंग भंग आंदोलन और असहयोग आंदोलन दूनौ मां 'वंदे मातरम्' प्रभावी सिद्ध भा। स्वतंत्रता संग्राम सेनानिन के लिए ई गीत पवित्र मंत्र बनि गा ।
बंकिम बाबू 'आनंदमठ' उपन्यास सन् 1880 मां लिखिन। कलकत्ता केरी 'बंग दर्शन' मासिक पत्रिका मां ऊका क्रमशः प्रकाशित कीन गा। 'आनंदमंठ' लिखै केरे पाँच साल पहिले बंकिम बाबू 'वंदे मातरम्' लिखि चुके रहैं। गीत लिखै केरे बाद ई अइसेन परा रहै। 'आनंदमठ' उपन्यास प्रकाशित होय के बाद लोगन का ई के बारेम पता चला।
ई बारेम एक दिलचस्प कथा है। बंकिम बाबू 'बंग दर्शन' केरे संपादक रहैं। एक बार पत्रिका केर मैटर कम्पोज होय रहा रहै। तब कुछ मैटर कम परिगा , बंकिम बाबू केरे सहायक रामचंद्र बंदोपाध्याय बंकिम बाबू केरे घर गे और उनकी नजर 'वंदे मातरम्' लिखे भए कागज पर परिगै।
कागज उठाय के बंदोपाध्याय जी कहिन, फिलहाल तौ यहेस काम चलि जाई, पर बंकिम बाबू गीत प्रकाशित करैक तैयार नाय भे। ई बात है सन् 1872 से 1876 के बीच केरी। बंकिम बाबू बंदोपाध्याय जी से कहिन कि आज ई गीत लोग समझि नाय पइहैं,पर एक दिन अइस आई कि ई गीत सुनिके सारा देश जागि उठी।यहै भा। साहित्यकार कालदृष्टा होत है।