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-डा•ज्ञानवती
भारत केर ऊ गौरवशाली और उजरे इतिहास केरी झलक हमरे मन का ओद कै जाती हैं।आज देखौ कि लेखक अपने देश और समाज केरी बुराई नाय कै होत हैं।हमरे देश मां वहै सबसे बड़ा साहित्यकार, जौ धर्म और संस्कृति केरी उड़ाई करै।वामपंथियाये साहित्यकार हमरे जइसेन का नसीहत देत हैं कि धर्म और संस्कृति पर लिखिहौ ,तौ छवि खराब होय जाई।तुमरा बहिष्कार होय जाई।काका बहुत बढ़िया लिखिगे इन सबके बारे मां-
दस ग्रंथो से टीपकर पुस्तक की तैय्यार ।
उस पुस्तक पर मिल गया पुरस्कार सरकार ॥
पुरस्कार सरकार लेखनी सरपट रपटे ।
सूझ-बूझ मौलिकता, भय से पास न फटके ॥
जोड़-तोड़ में कुशल पहुँच है ऊँची जिसकी ।
धन्य होय साहित्य बोलती तूती उसकी।।
कौनो पाठक हमका फेसबुक पर ई लोक कविता भेजिस-
जे आवै ते लूटै खाय
परचल घोड़ भुसवले जाय
हँस-हँस बोलै ठोंकै पीठ
सौ-सौ पाठ पढ़वले जाय
केहू ओनइस केहू बीस
जोरै हाथ निपोरै खीस
रोज-रोज मुर्गा तोरत हौ
कइसे कहीं बिलाई आन्हर॥
इनकर किरिया उनकर बात
सोच-सोच के काटीं रात
के केतनी पानी में हउवै
मालुम हौ सब कर औकात
फूटल जइसे करम हमार
ओरहन सुन-सुन दुखै कपार
आपन तेल निहारत नाँही
दिया कहे पुरवाई आन्हर॥
फेसबुक तौ ज्ञान केर अक्षय सोता है।हम बहुत कुछ देश-दुनिया समाज के बारे मां जान जाइत है।
एक कहानी गांव मां कही जाती है।एक दिन सबेरे सबेरे सियार उठा और अपनी छाया देखिस। दस फुट लंबी दिखाई परी, तौ सोचिस कि आज तौ कलेवा मां हाथी चाही, ईसे कम मां काम नाय चली और लगा हाथी ढूंढै।दुइ ढाई घंटे ढूंढै के बादौ हाथी तौ कहूं मिला नाय और पेट सेने खबर आवै लगी कि भूख लगि रही है, फिर सोचिस चलौ, हाथी ना सही कौनो बैल ,गाय ,घोड़ा जौ मिलि जाए ,वही से काम चलाय लेबा, फिर लगा बैल ,गाय ,घोड़ा ढूंढै और दुइ ढाई घंटा बीति गे, गाय, बैल, घोड़ौ कहूं नाय देखाई परे, फिर पेट से सूचना आवै लगी कि भाई जल्दी करौ। पेट मइहां कुछ डारौ ।फिर सोचिस कि चलौ बैल ,घोडा ,हाथी नहीं मिला, तौ कोई बात नाय है, भेड़ बकरी सेने काम चली। अब ऊ लगा भेड़ी और बकरी ढूंढै और घंटा डेढ़ घंटा बीत गा ,छाया छोटी दिखाय लाग, भेड़ी बकरिव नाय मिली और दुपहर होइगै। छाया देखै ऊ नीचे झुका तो छाया तौ कहूं दिखाई नाय परी।भुइं पर चूंटी रेंगत देखाई परीं और ऊ चूंटी बीन बीन के खाय लाग।
यहै हाल है विपक्ष केर। पहिले कहिन हम जितबै,फिर ई वी एम खराब,फिर जनता का मूर्ख बतावै लाग।
अवधी हमार:१८