डा•ज्ञानवती
लोक मां अइसी हजारौं कहानी भरी पड़ी हैं,जौ हमरी अजिया,नानीऔर अम्मा सुनावत रही हैं।आज उनका सहेजै केरी जरुरत है।आज सुनाइत है सीतापुर केरी एक लोककथा।
एक रहा नेउरा और एक रहा मूस। दूनौ मां खुब गहिरी दांत काटी मित्रता रहै। एक दिन दूनौ देखिन कि एक खरबूजे केर खेत है,जीमां पाक पाक खरबूजा लोटत परे महकि रहे रहैं। मूस
कहिस, "मित्र!देखौ तौ कइस नीक खरबुज्जा लाग हैं । चलौ छकि कै आजु खाइ लीन जाय।"
नेउरा कहिस -जौ पकरे गेन?
-अरे कुच्छ ना होई मित्र!
मूस कहिस।
बस दूनौ जने घुसिगे खेत मां और कूदि कूदि खरबुज्जा खाय लाग। जब पेट भरि गा तौ डकारत डकारत वापिस अपने स्थान पर पहुंचे। दूनौ जने आपन आपनी बिल मां घुसिगे। मूस तौ
घुसिगा तुरंतै, लकिन नेउरा केर पेट खाय खाय यतना मोटाइ गा रहै कि ऊकर पेट बिल मइहां अँटकि गा। नेउरा बहुत कोसिस किहिसि, लेकिन निकरि नाय पावा। फिर हुवां से चिल्लीतडाब डारिस-
"अरे मुसौने!सुन मोरे भाई!
जाय रही अब जान बचावौ।
अरे मुसौने जल्दी आवौ!"
मूस आइ कै देखिस तौ घबराया गा। फिर बड़ी देर मां एक उपाय सोचि के बताइस,
"नेउरऊ , खरबुज्जा खाय के तुमार पेट बहुत फूलि गा है। तुइ बढ़ई के पास जाइ कै रंदा सेने आपन पेट छोलवाय लेव। फिर बिल मां घुसि पइहौ ।"
नेउरा बढ़ई केरे पास गा। ऊ बढ़ई से कहिस -
हमार पेट, बहुत भा मोट।
देह न बिल मां समाय।
खरबुज्जा बहुत खाएन।
खाये बिना रहि न पाएन।
अब अपने घर कइसे जाई ।
रंदा से पेट छोलाई।।
बढ़ई कहिस, "भाग हियां से। तुमरी खातिर हम आपन रंदा काहे खराब करी !"
नेउरा बहुत गुस्साय गा। ऊ राजा केरे पास गवा और कहै लाग -
हमार पेट बहुत भा मोट।
बढई न पेटवा छोलै,
पेटवा न बिल मां समाय,
खरबुज्जा बहुत खाएन,
खाये बिना रहि न पाएन,
अपने घर कइसे जाई !
राजा कहिस- जा भाग हियां से।तोरी खातिर हम अपने बढ़ई का कुछ ना कहब।
नेउरा बहुत गुस्साय गा। ऊ रानी केरे पास पहुंचा । राजा केरी सिकाइत किहिस-
रानी रानी !
हमार पेट बहुत भा मोट।
बढई ना इसका छोलै।
राजा हमरी न सुनिहै।
पेटवा न बिल मां समाय,
खरबुज्जा बहुत खायेन,
खाये बिन रहि न पाएन,
अपने घर कइसे जाई !
रानी कहिस, " जा भागि। बड़ा आवा राजा केरी सिकाइत लैके।
नेउरा का बहुत गुस्सा आवा। गुस्सायके ऊ सांप केरे पास गा।सबकी सिकाइत किहिस और कहिस तुम रानी राजा का डसि लेव।
सांप सांप तू राजा रानी डस।
हमार पेट बहुत भा मोट।
बढई न उसका छोलै।
खरबुज्जा बहुत खायेन।
खाये बिन रहि न पाएन।
पेटवा न बिल मां समाय ।
अपने घर कइसे जाई।
सांप फुंकारि के कहिस, " जा भाग हियां से।
नेउरा का बहुत गुस्सा आवा। गुस्साय के ऊ लट्ठ केरे पास गा, साँप केरी सिकाइत करे लाग। कहिस कि लट्ठ भाई तुम चलिके ऊ साँप का मारौ।
लटठ भाई सांप मार।
ऊ रानी राजा न डसै।
हमार पेट बहुत भा मोट।
बढई न ऊका छोलै।
खरबुज्जा बहुत खाएन।
खाए बिन रहि न पाएन।
पेटवा न बिल मां समाय।
अपने घर कइसे जाई।
लट्ठ कहिस, " जा भाग हियां से।
नेउरा फिर जाइ कै भाड़ केरे पास पहुँचा।ऊ देखिस कि भाड़ खुब जोर से बरत रहै।ऊ भाड़ सेने कहै लाग -
भाड़ भाड़ लट्ठ जार,
लटठ न सांप मारै,
सांप न राजा रानी डसै
हमार पेट बहुत भा मोट।
बढई न ऊका छोलै।
खरबुज्जा बहुत खाएन।
खाये बिन रहि न पाएन।
पेटवा न बिल मां समाय।
अपने घर कइसे जाई।
भाड़ कहिस, " जा भाग हियां से।
नेउरा हाथी केरे पास पहुँचा। हाथी तलैया मा नहात रहै। नेउरा ध्यान से देखत रहा। जब हाथी नहाय कै निकरा तौ नेउरा आपन कथा कहिस। ऊ हाथी से कहै लाग -
हाथी हाथी भाड़ बुताव।
भाड न लट्ठ जारै।
लट्ठ न सांप मारै।
सांप न राजा रानी डसै।
हमार पेट बहुत भा मोट।
खरबुज्जा बहुत खाएन।
खाए बिन रहि न पाएन।
पेटवा न बिल मां समाय।
अपने घर कइसे जाई।
हाथी कहिस, "जा भाग हियां से।
नेउरा एक पेड़ केरे पास पहुँचा। देखिस कि एक मोट पेड़ मां एक बौंडी लिपटि कै अस बांधि दिहिस कि पेड़ बिल्कुल जाम।! नेउरा कहै लाग बौंडी से-
बौंडी बौंडी हाथी बांध।
हाथी न भाड़ बुझावै।
भाड़ न लट्ठ जारै।
लट्ठ न सांप मारै।
सांप न राजा रानी डसै।
हमार पेट बहुत भा मोट।
खरबुज्जा बहुत खाएन।
खाए बिन रहि न पाएन।
पेटवा न बिल मां समाय।
अपने घर कइसे जाई।
बौंडी कहिस, " जा भाग हियां से।
नेउरा हँसिया से रोय रोय कै कहै लाग -
हँसिया हँसिया बौंडी काट।
ऊ न हाथी बांधै।
हाथी न भाड़ बुतावै।
भाड न लट्ठ जारै।
लटठ न सांप मारै।
भाड़ न लट्ठ जारै।
लट्ठ न सांप मारै।
सांप न राजा रानी डसै।
हमार पेट बहुत भा मोट।
खरबुज्जा बहुत खाएन।
खाए बिन रहि न पाएन।
पेटवा न बिल मां समाय।
अपने घर कइसे जाई।
हँसिया का बहुत दुख भा।ऐतनी बेकदरी नेउरा केर।
ऊ कहिस, " चलौ देखी कउन तुमका सतावत है।"
बौंडी जब देखिस कि नेउरा हंसिया लै कै ऊका काटै आवत है, तौ डराय के कहै लाग -
हम तौ हाथी बांधित जाय।
तब हाथी डराइ गा और कहै लाग -
हम तौ भाड़ बुझाइत जाय।
अब भाड़ डराय के लट्ठ जरावै चला।
लट्ठ कहै लाग -
हम तौ सांप मारै जातै रहन।
सांप तौ वइसेव दुइमुंहा होत है। वहौ अपने कहे से पल्टि गा। कहै लाग -
हम तो राजारानी छोडिबे नाय।
राजा रानी कहिन-जा बढई।तू नेउरा केरी सुन।
बढ़ई डेराइ गा। ऊ कहिस हम नेउरा केर पेट छील देबा।
बस फिर का बढ़ई उठाइस रंदा और पेट छोलि दिहिस। जब घाव पिराय लाग तो ऊ बढ़ई से पूछिस कि 'अब इसका ठीक करै केरी दवाई बताव। बढ़ई तौ पहिलेन से नाराज रहा। सोचिस कि ई इतना बवाली नेउरा है,अइस दवा बताव कि भरि पावै।ऊ कहिस कि 'जाव कुस कांस मां लोटि लेव, सब ठीक होइ जाय। ऊ कुस कांस मां लोटै लाग। देहीं भरि छोलिगै ।ऊ हुवैं लोटि लोटि के मरि गा।का ई लोककथा आप लोगन का सीमा पार केरी याद नाय देवाय रही?