अवधी हमार:१४

 


        


    -डा•ज्ञानवती



एक कहानी सुनाइत है।कइयौ बार ज्ञानी आदमी अहंकार करै लागत है। अहंकार अच्छी चीज तौ है नाय।अपने देस मां महाकवि भये कालीदास।
 महाकवि कालीदास केरे कंठ मां साक्षात सरस्वती केरा वास रहै। शास्त्रार्थ मां उनका कौनो पराजित नाय कै सकत रहै। अपार यश, प्रतिष्ठा और सम्मान पायके एक बार कालिदास का अपनी विद्वत्ता केरा घमंड होइगा।
उनका लाग कि वै विश्व केरा सारा ज्ञान प्राप्त कै लिहिन है और अब सीखै का कुछ बाकी नाय बचा। उनसे बड़ा ज्ञानी संसार मां कोई दूसर नाय। एक बार पड़ोसी राज्य से शास्त्रार्थ केरा निमंत्रण आवा।कालिदास विक्रमादित्य से अनुमति लइके अपने घोड़ा पर रवाना भए।
गर्मी केरा मौसम रहै। धूप  तेज रहैऔर लगातार यात्रा से कालीदास का प्यास लगि आई। थोड़ी तलाश करै पर उनका एक टूटी फूटी झोपड़ी दिखाई परी। पानी केरी आशा मां ऊ उधर बढ़ि चले। झोपड़ी के समहे एक कुऔं रहै।
कालीदास  सोचिन - कोई झोपड़ी मां होय तो ऊसे पानी देय केरा अनुरोध कीन जाय। वही समय झोपड़ी से एक नान्ह बिटेवा मटका लइके निकरी। बिटेवा  कुएं से पानी भरिस और हुआं से जाय लागी।
कालीदास ऊके पास जायके बोले- बिटिया ! बहुत पियास लगी है ।तनी पानी पियाय देव। 


बिटेवा  पूछिस- आप कौन हौ ? हम आपका जानित  नाय, पहिले आपन परिचय देव। 


कालीदास का लाग  उनका कउन नाय जानत भला, उनका परिचय देय की  का आवश्यकता ?
तबहूं वै पियासे  रहैं, बेहाल होइके बोले- बिटिया! अबहीं तुम छोटी हौ। ई लिए हमका नाय जानति हौ। घर मां कौनो बड़ा होय तौ ऊका भेजौ। ऊ हमका देखतै  पहचानि लेहै। हमरा बहुत नाम अउर सम्मान है दूर-दूर तक। हम बहुत विद्वान व्यक्ति हन।कालीदास केरे बड़बोलेपन और घमंड भरे वचन सुनिके ऊ बिटेवा कहिस- आप असत्य कहि रहे हौ। संसार मां सिर्फ दुइ  बलवान हैं और उन दूनौं का हम जानित है। आपन पियास बुझावा चाहत हौ, तौ उन दूनौं केरा नाम बताव?
थोड़ा सोचिके कालीदास बोले- हमैं नाय मालुम, तुमही बताय देव , पहिले तनी पानी पियाय देव। हमरा गला सूखि रहा है।  
बालिका बोली- दुइ बलवान हैं- 'अन्न' और 'जल'। भूख और प्यास मां इतनी शक्ति है कि बड़े से बड़े बलवानौ का  झुकाय देंय। देखौ भला पियास  आप केर का हालत बनाय दिहिस है।
कालिदास चकित रहिगे। लड़की केरा तर्क अकाट्य रहै। बड़े-बड़े विद्वानन का पराजित कै चुके कालीदास एक बच्ची केरे समहे निरुत्तर खड़े रहैं। 


बालिका फिर पूछिस- सच सच बताव, कौन हौ आप ?ऊ चलै केरी तैयारी मा भई।
कालिदास थोड़ा नम्र होयके बोले- बिटिया! हम बटोही हन। 


हंसत भए बच्ची बोली- आप अबहूं  झूठ बोलि रहे हौ। संसार मां दुइये बटोही हैं। ऊ दूनौं का हम जानित है, बताव दूनौं कउन हैं ? 
तेज पियास  पहिलेन  कालीदास केरी बुद्धि क्षीण कै दिहिस रहै।लाचार होयके वै फिर से अनभिज्ञता व्यक्त कै दिहिन।
बच्ची बोली- आप स्वयं का बड़ा विद्वान बताय रहे हौ और यहौ नाय  जानत ? एक स्थान सेने दुसरे स्थान तक बिना थके जाय वाला बटोही कहलावत है। बटोही दुइये हैं, एक चंद्रमा और दूसर सूर्य, जौ बिना थके चलत रहत हैं। आप तौ थकिगे हौ। भूख-प्यास सेने बेदम हौ। आप कैसे बटोही होय सकत हौ ?
ई कहिके बालिका  पानी केरा मटका उठाइस और झोपड़ी केरे भीतर चली गै। अब तौ कालीदास औरौ  दुखी होइगे। इतने अपमानित वै जीवन मां कबहूं नाय भए। पियास सेने शरीर केरी शक्ति घटि रही रहै। दिमाग चकराय रहा रहै ।  वै आशा से झोपड़ी केरी तरफ देखिन। तबहीं अंदर से एक वृद्ध स्त्री निकरी। 
ऊके हाथ मां खाली मटका रहै। ऊ कुएं से पानी भरै लगी। अब तक काफी विनम्र होय चुके कालीदास बोले- महतारी तनी पानी पिलाय देव। बड़ा पुण्य होई।
स्त्री बोली- बेटा हम तुमका जानित नाय।आपन परिचय देव। हम अवश्य पानी पियाय देबा। 


कालिदास  कहिन- हम महिमान हन,  पानी पियाय देव। 


स्त्री बोली- तुम महिमान कैसे होय सकत हौ ? संसार मां दुए मेहमान हैं। पहिला धन और दुसरा यौवन। इनका जाय मां समय नाय लागत। सत्य बताव कौन हौ तुम ?


 अब तक केरे सारे तर्क  सेने पराजित हताश कालीदास बोले- हम सहनशील हन। अब तौ आप पानी पियाय देव। 


स्त्री  कहिस- नाहीं, सहनशील तो दुइये हैं। पहिली, धरती जौ पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहत है। ऊकी छाती चीरि के बीज बोय देंय ,तबहूं  अनाज केरे भंडार देत है।


दुसरे, पेड़ जिनका पत्थरौ मारौ , तबहूं मीठे फल देत हैं। तुम सहनशील नाय हौ। सच बताव तुम कौन हौ ? 
कालिदास  मूर्च्छा केरी स्थिति मां आइगे और तर्क-वितर्क से झल्लाय के बोले-  हम जिद्दी हन।


स्त्री बोली- फिर असत्य। हठी तो दुइये हैं- पहिल नख और दुसरे केश, केतनौ काटौ, बार-बार निकरि आवत हैं। सत्य कहौ,ब्राह्मण कौन हौ आप ?
 पूरी तरह अपमानित और पराजित होय चुके कालीदास  कहिन- फिर तौ हम मूर्खै हन।
नाहीं, तुम मूर्ख कैसे होय सकत हौ। मूर्ख दुई  हैं। पहला राजा जौ बिना योग्यता केरे  सब पर शासन करत है और दूसर दरबारी पंडित जौ राजा का प्रसन्न करने करै  के लिए गलत बातौ पर तर्क कै के ऊका सही सिद्ध करै केरी चेष्टा करत हैं।
कुछ बोलि न सकै केरी स्थिति मां कालिदास वृद्धा केरे पैरन पर गिरि परे और पानी केरी याचना मां गिड़गिड़ाय लागे। 


वृद्धा  कहिस- उठौ वत्स ! 
आवाज सुनिके कालीदास  ऊपर देखिन तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी रहैं। कालीदास पुनः नतमस्तक होइगे।
माता कहिन- शिक्षा से ज्ञान आवत है ,न कि अहंकार। तुम शिक्षा केरे बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा का  अपनी उपलब्धि मानि बैठेव और अहंकार करि बैठेव। यहे लिए हमका तुमरे चक्षु खोलै के लिए ई स्वांग करैक परा।
कालीदास का आपन गलती समझ मां आय गई और भरपेट पानी पीकै वै आगे चलि परे।


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